तेलंगाना के जंगल बर्बाद करने का सच और वन्यजीवों के प्रति बेरुखी ,जंगल जल रहे हैं, और सरकार चुप है

तेलंगाना के कंचा गचिबोवली में 400 एकड़ हरे-भरे जंगल को काटने की तैयारी चल रही है। पक्षियों की चहचहाहट, हिरणों की उछल-कूद, और प्रकृति का अनमोल खजाना—यह सब अब खतरे में है। सरकार का दावा है कि यह विकास के लिए जरूरी है, लेकिन क्या यह सचमुच प्रगति है या फिर पर्यावरण और वन्यजीवों के खिलाफ एक खुला युद्ध? इस ब्लॉग में हम तेलंगाना सरकार की नीतियों की आलोचना करेंगे और पूछेंगे—क्या जानवरों और पक्षियों से प्रेम सिर्फ कागजों तक सीमित रह गया है?


तेलंगाना सरकार का ढोंग: विकास के नाम पर विनाश

तेलंगाना सरकार ने कंचा गचिबोवली की 400 एकड़ भूमि को आईटी पार्क और बुनियादी ढांचे के लिए नीलाम करने का फैसला किया है। मुख्यमंत्री रेवंथ रेड्डी का कहना है कि इससे 50,000 करोड़ रुपये का निवेश और 5 लाख नौकरियां आएंगी। सुनने में यह शानदार लगता है, लेकिन इसके पीछे का सच क्या है? यह क्षेत्र 237 से अधिक पक्षी प्रजातियों, हिरण, जंगली सूअर, और भारतीय तारक कछुए का घर है। सरकार इसे “झाड़ियों” का इलाका कहकर खारिज कर रही है, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इसे गंभीरता से लिया और 3 अप्रैल, 2025 को कटाई पर रोक लगा दी।

क्या सरकार को नहीं पता कि यह शहरी वन हैदराबाद के “हरे फेफड़े” की तरह काम करता है? एक रिपोर्ट के मुताबिक, इस जंगल के नष्ट होने से तापमान 1 से 4 डिग्री सेल्सियस तक बढ़ सकता है। फिर भी, सरकार ने बिना पर्यावरणीय प्रभाव मूल्यांकन (EIA) और वन प्राधिकरण की मंजूरी के भारी मशीनरी उतार दी। यह लापरवाही नहीं, बल्कि जानबूझकर प्रकृति के साथ खिलवाड़ है।


वन्यजीवों के प्रति बेरुखी: संरक्षण सिर्फ दिखावा?

सरकार “हरिता हरम” और “मिशन काकतीय” जैसे कार्यक्रमों का ढोल पीटती है। हरिता हरम के तहत 273 करोड़ पौधे लगाने का दावा है, लेकिन कंचा गचिबोवली में पेड़ काटने की जल्दबाजी क्यों? क्या यह संरक्षण का दोहरा चेहरा नहीं है? इस क्षेत्र में मोर झील और भैंस झील जैसे जलाशय हैं, जो प्रवासी पक्षियों के लिए स्वर्ग हैं। लेकिन सरकार के लिए ये सब मायने नहीं रखता—उनकी नजर सिर्फ नीलामी से मिलने वाले 75 करोड़ रुपये प्रति एकड़ पर है।

भारतीय तारक कछुआ, जो IUCN रेड लिस्ट में संवेदनशील है, और अन्य वन्यजीव अपने घर खो देंगे। मानव-वन्यजीव संघर्ष बढ़ेगा, और जैव विविधता का नुकसान होगा। क्या सरकार को यह समझ नहीं कि आर्थिक विकास के लिए प्रकृति को कुर्बान करना भविष्य की पीढ़ियों के साथ धोखा है?


कानून का मखौल: सुप्रीम कोर्ट की फटकार

सुप्रीम कोर्ट ने सरकार की कार्रवाई को “चिंताजनक” बताया और मुख्य सचिव को व्यक्तिगत रूप से जवाबदेह ठहराया। कोर्ट ने सवाल उठाया कि बिना मंजूरी के कटाई क्यों शुरू की गई? मार्च 2025 में विशेषज्ञ समिति बनाई गई, लेकिन उसके तुरंत बाद कटाई शुरू कर दी गई—यह नियम 16(1) का खुला उल्लंघन है। सरकार का यह रवैया दिखाता है कि वह कानून और पर्यावरण की परवाह नहीं करती। छात्रों और पर्यावरणविदों ने विरोध किया, लेकिन पुलिस ने उन्हें हिरासत में ले लिया। क्या यही है सरकार का लोकतंत्र?


जनता की आवाज दबाई जा रही है

कंचा गचिबोवली को बचाने के लिए हैदराबाद विश्वविद्यालय के छात्रों और नागरिकों ने “Save City Forest” अभियान चलाया। सोशल मीडिया पर #SaveKanchaGachibowli ट्रेंड कर रहा है, लेकिन सरकार ने इसे अनसुना कर दिया। यह सिर्फ जंगल की बात नहीं, बल्कि हमारे बच्चों के भविष्य की बात है। सरकार को जनता की चिंताओं को सुनना चाहिए, न कि उन्हें दबाना।

सरकार को जवाब देना होगा
तेलंगाना सरकार का यह कदम विकास के नाम पर विनाश का प्रतीक है। जंगल काटकर आईटी पार्क बनाना प्रगति नहीं, बल्कि प्रकृति के खिलाफ अपराध है। सरकार को चाहिए कि:
कंचा गचिबोवली को संरक्षित क्षेत्र घोषित करे।

विकास के लिए वैकल्पिक जगहों का इस्तेमाल करे।

वन्यजीवों के पुनर्वास की योजना बनाए।
अगर सरकार सचमुच जानवरों और पक्षियों से प्रेम करती है, तो उसे अपने कार्यों से साबित करना होगा। अभी तो यह सिर्फ ढोंग और लालच का खेल लगता है। आप क्या सोचते हैं? कमेंट में अपनी राय जरूर बताएं और इस ब्लॉग को शेयर करें ताकि ज्यादा से ज्यादा लोग इस मुद्दे पर जागरूक हों।

By Abhishek Anjan

I am a mass communication student and passionate writer. With the last four -year writing experience, I present intensive analysis on politics, education, social issues and viral subjects. Through my blog, I try to spread awareness in the society and motivate positive changes.

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