Pope Francis: The End of an Era, the Legacy of a Lifetime

21 अप्रैल, 2025 की सुबह, वेटिकन सिटी में एक गहरी उदासी छा गई। रोमन कैथोलिक चर्च के प्रमुख और विश्व के 1.4 अरब कैथोलिकों के आध्यात्मिक नेता, पोप फ्रांसिस, 88 वर्ष की आयु में इस दुनिया से विदा हो गए। कार्डिनल केविन फैरेल ने वेटिकन के कासा सांता मार्ता से इस दुखद समाचार की घोषणा की, जहां पोप ने अपने अंतिम दिन बिताए। उनकी मृत्यु न केवल कैथोलिक समुदाय, बल्कि पूरी दुनिया के लिए एक बड़ा नुकसान है, क्योंकि पोप फ्रांसिस सिर्फ एक धार्मिक नेता नहीं, बल्कि मानवता, विनम्रता और सामाजिक न्याय के प्रतीक थे।


एक असाधारण जीवन की शुरुआत

पोप फ्रांसिस, जिनका असली नाम जॉर्ज मारियो बर्गोलियो था, का जन्म 17 दिसंबर, 1936 को अर्जेंटीना के ब्यूनस आयर्स में एक इतालवी मूल के परिवार में हुआ था। रसायन शास्त्र में तकनीशियन के रूप में पढ़ाई करने के बाद, उन्होंने जीवन के कई रंग देखे—बार बाउंसर से लेकर स्कूल शिक्षक तक। लेकिन 1958 में, जब वे जेसुइट सोसाइटी में शामिल हुए, तब उनके जीवन ने एक नया मोड़ लिया। 2013 में, पोप बेनेडिक्ट XVI के ऐतिहासिक इस्तीफे के बाद, वे पहले जेसुइट, पहले दक्षिण अमेरिकी और एक हजार साल से अधिक समय में पहले गैर-यूरोपीय पोप चुने गए।

उनका नाम “फ्रांसिस” चुनना, जो संत फ्रांसिस ऑफ असीसी के सम्मान में था, उनके जीवन के मिशन को दर्शाता था—गरीबों, वंचितों और पर्यावरण की सेवा।
“लोगों का पोप”

पोप फ्रांसिस को “लोगों का पोप” कहा जाता था, और यह उपाधि बिल्कुल सटीक थी। उन्होंने अपने कार्यकाल में वेटिकन की पारंपरिक भव्यता को छोड़कर सादगी को अपनाया। वे पोप के शाही महल में रहने के बजाय कासा सांता मार्ता के गेस्टहाउस में रहे, जहां वे अन्य लोगों के साथ सामुदायिक जीवन जीते थे। उनकी यह विनम्रता उनकी हर बात और हर कदम में झलकती थी।

उनके पहले सार्वजनिक संबोधन में, जब उन्होंने दुनिया को “बुओनासेरा” (गुड इवनिंग) कहकर अभिवादन किया, तो यह साफ था कि यह पोप अलग है। उन्होंने न केवल कैथोलिकों, बल्कि सभी धर्मों और विचारधाराओं के लोगों के साथ संवाद स्थापित किया। चाहे वह लम्पेदुसा में प्रवासियों से मिलना हो, जेलों में कैदियों के पैर धोना हो, या फिर पर्यावरण संरक्षण के लिए “लौडाटो सी” जैसे ऐतिहासिक दस्तावेज जारी करना हो—पोप फ्रांसिस ने हमेशा मानवता को प्राथमिकता दी।


स्वास्थ्य चुनौतियां और अंतिम दिन

पोप फ्रांसिस का स्वास्थ्य हमेशा से नाजुक रहा। 21 साल की उम्र में एक फेफड़े का हिस्सा हटाने के बाद, उन्हें सांस की समस्याओं का सामना करना पड़ा। 2025 की शुरुआत में, उन्हें डबल निमोनिया के कारण रोम के जेमेली अस्पताल में 38 दिनों तक भर्ती रहना पड़ा। इसके बावजूद, उनकी इच्छाशक्ति और सेवा के प्रति समर्पण ने उन्हें अंत तक सक्रिय रखा।

उनका अंतिम सार्वजनिक प्रदर्शन 20 अप्रैल, 2025 को ईस्टर संडे के दिन हुआ, जब उन्होंने व्हीलचेयर पर सेंट पीटर स्क्वायर में हजारों लोगों को आशीर्वाद दिया। पोपमोबाइल में घूमते हुए, उन्होंने बच्चों को आशीर्वाद दिया और भीड़ से “विवा इल पापा!” (लंबे समय तक जीवित रहें पोप!) के नारों का जवाब मुस्कान के साथ दिया। यह दृश्य, जो उनकी मृत्यु से महज 19 घंटे पहले का था, उनकी जीवटता और लोगों के प्रति प्रेम को दर्शाता है।


एक विवादास्पद और प्रगतिशील नेता

पोप फ्रांसिस का कार्यकाल विवादों से मुक्त नहीं था। जहां उनकी प्रगतिशील नीतियों—जैसे जलवायु परिवर्तन, प्रवासियों के अधिकार, और समलैंगिक समुदाय के प्रति स्वीकार्यता—ने उन्हें लाखों लोगों का प्रिय बनाया, वहीं रूढ़िवादी कैथोलिक समुदाय ने उनकी आलोचना भी की। कुछ ने उन्हें पूंजीवाद और पारंपरिक नैतिक शिक्षाओं के खिलाफ बोलने के लिए बहुत उदार माना। फिर भी, उन्होंने हमेशा अपने विश्वास और मानवता के प्रति अपनी प्रतिबद्धता को प्राथमिकता दी।


पोप की मृत्यु: अब क्या?

पोप फ्रांसिस की मृत्यु के साथ ही वेटिकन एक अंतरिम अवधि (इंटररेग्नम) में प्रवेश कर चुका है। कार्डिनल केविन फैरेल, जो वेटिकन के कैमरलेंगो हैं, अब चर्च के प्रशासन का नेतृत्व करेंगे। अगले 15-20 दिनों में, 80 वर्ष से कम आयु के कार्डिनल सिस्टिन चैपल में एक गुप्त कॉन्क्लेव में नए पोप का चयन करेंगे। इस प्रक्रिया का समापन तब होगा, जब सिस्टिन चैपल की चिमनी से सफेद धुआं निकलेगा, जो नए पोप के चयन का संकेत होगा।

पोप फ्रांसिस ने अपनी मृत्यु से पहले अपनी अंतिम संस्कार की प्रक्रियाओं को सरल कर दिया था। उन्होंने पारंपरिक वैभव को छोड़कर एक साधारण अंतिम संस्कार और वेटिकन के बाहर दफन होने की इच्छा व्यक्त की थी। यह निर्णय भी उनकी विनम्रता और सादगी का प्रतीक है।


एक अमर विरासत

पोप फ्रांसिस का जाना सिर्फ एक व्यक्ति का अंत नहीं, बल्कि एक युग का समापन है। उन्होंने दुनिया को दिखाया कि नेतृत्व का मतलब केवल शक्ति या अधिकार नहीं, बल्कि करुणा, सेवा और प्रेम है। उनकी शिक्षाएं—चाहे वह गरीबों के लिए उनकी वकालत हो, पर्यावरण संरक्षण हो, या फिर शांति और स्वतंत्रता की बात—लंबे समय तक प्रासंगिक रहेंगी।

उनके शब्द, “शांति के बिना कोई स्वतंत्रता नहीं, और स्वतंत्रता के बिना कोई शांति नहीं,” आज भी हमें प्रेरित करते हैं। जैसे-जैसे दुनिया उनके निधन पर शोक मनाती है, उनकी विरासत हमें एक बेहतर, अधिक मानवीय दुनिया बनाने के लिए प्रेरित करती रहेगी।

 

By Abhishek Anjan

I am a mass communication student and passionate writer. With the last four -year writing experience, I present intensive analysis on politics, education, social issues and viral subjects. Through my blog, I try to spread awareness in the society and motivate positive changes.

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