Chirag paswanChirag paswan

चिराग केंद्र की राजनीति छोड़ ,बिहार मे फ्रन्ट फुट पर क्यों ?

बिहार की राजनीति में चिराग पासवान एक बार फिर सुर्खियों में हैं। केंद्रीय मंत्रिमंडल में खाद्य प्रसंस्करण उद्योग मंत्री जैसे प्रभावशाली पद को छोड़कर बिहार विधानसभा चुनाव लड़ने की उनकी इच्छा ने सियासी गलियारों में हलचल मचा दी है। आखिर क्या कारण है कि चिराग पासवान दिल्ली की राष्ट्रीय राजनीति को छोड़कर बिहार की क्षेत्रीय सियासत में कदम रखने की तैयारी में हैं? इस सवाल का जवाब जानने के लिए हमें उनकी रणनीति, बिहार की सियासी जमीन और उनके ‘बिहार फर्स्ट, बिहारी फर्स्ट’ के विजन को समझना होगा।

चिराग पासवान का बिहार प्रेम और सियासी रणनीति


चिराग पासवान ने बार-बार कहा है कि उनकी राजनीति का केंद्र बिहार है। उनके पिता और लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) के संस्थापक रामविलास पासवान केंद्र की राजनीति में लंबे समय तक सक्रिय रहे, लेकिन चिराग की सोच इससे अलग है। वह बिहार को विकसित राज्यों की कतार में लाना चाहते हैं। हाल ही में उन्होंने कहा, “मैं खुद को लंबे समय तक केंद्र की राजनीति में नहीं देखता। मेरा लक्ष्य बिहार को प्रगति के पथ पर ले जाना है।” यह बयान न केवल उनकी प्राथमिकता को दर्शाता है, बल्कि उनकी दीर्घकालिक रणनीति को भी उजागर करता है। बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में उनकी पार्टी, लोजपा (रामविलास), 33-45 सीटों पर दावेदारी कर रही है, जो उनकी बढ़ती महत्वाकांक्षा का प्रतीक है।

केंद्र छोड़कर बिहार क्यों?


केंद्र में मंत्री के रूप में चिराग को न केवल राष्ट्रीय मंच पर पहचान मिल रही है, बल्कि आर्थिक और अन्य सुविधाएं भी हैं। एक केंद्रीय मंत्री को हर महीने लगभग 1.24 लाख रुपये वेतन, मुफ्त आवास, असीमित यात्रा और अन्य भत्ते मिलते हैं। वहीं, बिहार में कैबिनेट मंत्री का वेतन और सुविधाएं इससे काफी कम हैं। फिर भी, चिराग का बिहार की ओर रुख करना उनकी रणनीति का हिस्सा है। बिहार की सियासत में उनकी सक्रियता से उनकी पार्टी का जनाधार बढ़ सकता है, खासकर पासवान (दुसाध) समुदाय के बीच, जो बिहार की 5.31% आबादी का प्रतिनिधित्व करता है।

बिहार की सियासत में नया समीकरण


चिराग की विधानसभा चुनाव लड़ने की घोषणा ने बिहार के सियासी समीकरण को गर्म कर दिया है। एनडीए गठबंधन में नीतीश कुमार को 2025 के लिए मुख्यमंत्री चेहरा घोषित किया गया है, लेकिन चिराग की महत्वाकांक्षा और उनकी पार्टी की 40 सीटों की मांग ने जेडीयू और बीजेपी के बीच तनाव पैदा कर दिया है। कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि बीजेपी चिराग को नीतीश पर दबाव बनाने के लिए इस्तेमाल कर सकती है। 2020 के विधानसभा चुनाव में चिराग ने एनडीए से अलग होकर जेडीयू की कई सीटों पर नुकसान पहुंचाया था, जिसके बाद उन्हें ‘वोट कटवा’ कहा गया। इस बार, चिराग गठबंधन के साथ रहकर अपनी स्थिति मजबूत करना चाहते हैं।

सामान्य सीट से चुनाव: साहस या रणनीति?


चिराग पासवान की सामान्य सीट से चुनाव लड़ने की बात ने सबको चौंका दिया है। उनके जीजा और सांसद अरुण भारती ने कहा कि चिराग शाहाबाद या शेखपुरा जैसी अनारक्षित सीटों से चुनाव लड़ सकते हैं। यह कदम न केवल उनकी व्यापक स्वीकार्यता की चाहत को दर्शाता है, बल्कि दलित और गैर-दलित मतदाताओं को एक साथ जोड़ने की उनकी रणनीति को भी उजागर करता है। विपक्षी नेता मीसा भारती ने भी इस पर चुटकी लेते हुए कहा, “सांसदी छोड़कर सामान्य सीट से लड़ें, कोई दिक्कत नहीं।”

चिराग का सीएम बनने का सपना


चिराग के समर्थकों और पार्टी कार्यकर्ताओं में ‘चिराग फॉर सीएम’ का नारा जोर पकड़ रहा है। हालांकि, नीतीश कुमार के नेतृत्व में एनडीए की रणनीति और बीजेपी का समर्थन उनके लिए चुनौती है। कुछ विश्लेषकों का मानना है कि चिराग केंद्र में मंत्रिपद बनाए रख सकते हैं, भले ही वे विधानसभा चुनाव जीत जाएं। संविधान यह अनुमति देता है कि कोई लोकसभा सदस्य या केंद्रीय मंत्री बिना इस्तीफा दिए विधानसभा चुनाव लड़ सकता है। लेकिन अगर चिराग बिहार में बड़ी भूमिका निभाना चाहते हैं, तो भविष्य में उन्हें केंद्रीय मंत्रिमंडल से इस्तीफा देना पड़ सकता है।

चुनौतियां और संभावनाएं


चिराग के सामने कई चुनौतियां हैं। पहला, एनडीए के भीतर सीट बंटवारे को लेकर तनाव। दूसरा, नीतीश कुमार और जेडीयू के साथ पुरानी तल्खी। तीसरा, विपक्षी गठबंधन, खासकर तेजस्वी यादव, जो युवा नेतृत्व के रूप में मजबूत दावेदार हैं। इसके बावजूद, चिराग की युवा छवि, बिहार फर्स्ट का नारा और एनडीए के साथ मजबूत गठबंधन उन्हें एक मजबूत खिलाड़ी बनाता है। अगर उनकी पार्टी अच्छा प्रदर्शन करती है, तो वह बिहार में किंगमेकर की भूमिका निभा सकते हैं।

चिराग पासवान का बिहार विधानसभा चुनाव लड़ने का फैसला केवल एक सियासी कदम नहीं, बल्कि उनकी दीर्घकालिक रणनीति का हिस्सा है। वह बिहार को अपनी कर्मभूमि बनाकर न केवल अपनी पार्टी को मजबूत करना चाहते हैं, बल्कि युवा और दलित मतदाताओं के बीच अपनी पहचान को और गहरा करना चाहते हैं। केंद्र की चमक-दमक छोड़कर बिहार की धूल भरी सियासत में उतरना उनके साहस और बिहार के प्रति उनके प्रेम को दर्शाता है। क्या चिराग 2025 में बिहार की सियासत में नया इतिहास रच पाएंगे? इसका जवाब आने वाले महीनों में मिलेगा।

By Abhishek Anjan

I am a mass communication student and passionate writer. With the last four -year writing experience, I present intensive analysis on politics, education, social issues and viral subjects. Through my blog, I try to spread awareness in the society and motivate positive changes.

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