इसराइल-ईरान युद्धइसराइल-ईरान युद्ध

Israel-Iran कौन किस पर भाड़ी ,भारत किसे सपोर्ट किया और क्यों?

पश्चिम एशिया में इसराइल और ईरान के बीच तनाव एक बार फिर सुर्खियों में है। इस संघर्ष ने वैश्विक मंच पर हलचल मचा दी है। दोनों देशों के बीच तनाव नया नहीं है, लेकिन हाल के घटनाक्रमों ने इसे युद्ध की शक्ल दे दी है।अब  हम समझेंगे कि इसराइल और ईरान में से कौन सैन्य रूप से भारी पड़ रहा है, भारत का इस मामले में क्या रुख है?

Terrible fire in Israel, declared a national emergency
इसराइल-ईरान युद्ध: शुरुआत में कौन भारी?

इसराइल और ईरान के बीच तनाव की जड़ें 1979 की ईरानी क्रांति तक जाती हैं, जब ईरान की इस्लामी सरकार ने इसराइल को अपना दुश्मन घोषित किया। हाल के वर्षों में यह तनाव और बढ़ा, खासकर जब इसराइल ने सीरिया में ईरानी दूतावास पर हमला किया, जिसमें कई ईरानी अधिकारी मारे गए। जवाब में, ईरान ने 13 अप्रैल को इसराइल पर ड्रोन और मिसाइल हमले किए।

सैन्य ताकत की तुलना:

इसराइल: इसराइल की सैन्य ताकत उसकी उन्नत तकनीक और प्रशिक्षित सेना के कारण है। इसराइल के पास आयरन डोम, डेविड्स स्लिंग और एरो-3 जैसे मिसाइल रक्षा सिस्टम हैं, जो ड्रोन और मिसाइलों को नष्ट करने में सक्षम हैं। इसराइल के पास 340 अत्याधुनिक लड़ाकू विमान, जैसे F-16 और F-35, हैं। इसराइल की साइबर युद्ध क्षमता और खुफिया एजेंसी मोसाद भी विश्व स्तर पर मशहूर हैं। इसराइल की सेना में 1,69,500 सक्रिय और 4,65,000 रिजर्व सैनिक हैं।

ईरान: ईरान के पास 6,10,000 सक्रिय और 3,50,000 रिजर्व सैनिक हैं, साथ ही 2,20,000 अर्धसैनिक बल भी हैं। ईरान की ताकत उसकी मिसाइल और ड्रोन तकनीक में है, जो उसने इराक-ईरान युद्ध के दौरान विकसित की। हालांकि, ईरान की वायुसेना पुरानी है, और वह प्रॉक्सी समूहों (जैसे हिजबुल्लाह और हूती) के जरिए अप्रत्यक्ष युद्ध पर ज्यादा निर्भर करता है।

शुरुआती दौर में कौन आगे?

इसराइल अपनी उन्नत तकनीक, बेहतर प्रशिक्षण और अमेरिकी समर्थन के कारण शुरुआती दौर में भारी पड़ रहा है। ईरान के ड्रोन और मिसाइल हमलों को इसराइल ने आयरन डोम के जरिए काफी हद तक नाकाम कर दिया। हालांकि, ईरान की प्रॉक्सी ताकतें, जैसे लेबनान का हिजबुल्लाह और यमन के हूती, इसराइल के लिए चुनौती बनी हुई हैं।

भारत का स्टैंड: तटस्थता और कूटनीति

भारत ने इसराइल-ईरान संघर्ष में तटस्थ रुख अपनाया है। 13 जून को भारत के विदेश मंत्रालय ने बयान जारी कर दोनों देशों से तनाव कम करने और बातचीत के जरिए समाधान निकालने की अपील की। भारत का कहना है कि वह मध्य पूर्व में शांति चाहता है और किसी भी पक्ष का खुलकर समर्थन नहीं करता।
भारत की यह तटस्थता इसलिए है क्योंकि वह दोनों देशों के साथ अपने रणनीतिक और आर्थिक संबंधों को संतुलित करना चाहता है:

इसराइल के साथ संबंध: इसराइल भारत का महत्वपूर्ण रक्षा साझेदार है। भारत को हथियार और उन्नत तकनीक, जैसे ड्रोन और मिसाइल रक्षा प्रणाली, इसराइल से मिलती हैं। 1992 में राजनयिक संबंध स्थापित होने के बाद से दोनों देशों के बीच रक्षा, कृषि और तकनीक में सहयोग बढ़ा है।

ईरान के साथ संबंध: ईरान भारत के लिए कच्चे तेल का प्रमुख स्रोत है। भारत अपनी ऊर्जा जरूरतों का एक बड़ा हिस्सा मध्य पूर्व, खासकर ईरान, सऊदी अरब और यूएई से पूरा करता है। इसके अलावा, चाबहार बंदरगाह जैसे प्रोजेक्ट भारत के लिए रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण हैं।

भारत इसराइल को क्यों सपोर्ट करता है?

हालांकि भारत आधिकारिक तौर पर तटस्थ है, कि भारत का झुकाव इसराइल की ओर ज्यादा है। इसके पीछे निम्नलिखित कारण हैं:
रक्षा सहयोग: इसराइल भारत का चौथा या पांचवां सबसे बड़ा हथियार आपूर्तिकर्ता है। भारत-पाकिस्तान तनाव के दौरान इसराइल ने भारत का खुलकर समर्थन किया, खासकर 2019 के बालाकोट हमले और पहलगाम के बाद।

आतंकवाद के खिलाफ रुख: इसराइल आतंकवाद के खिलाफ कड़ा रुख अपनाता है, जो भारत की नीति से मेल खाता है। भारत भी आतंकवाद का शिकार रहा है, और इसराइल की तरह वह भी आतंकवादी संगठनों के खिलाफ मजबूत कार्रवाई में विश्वास रखता है।

तकनीकी और आर्थिक सहयोग: इसराइल भारत को ड्रोन, साइबर सिक्योरिटी और कृषि तकनीक जैसे क्षेत्रों में मदद करता है। यह भारत के स्टार्टअप और तकनीकी विकास के लिए भी महत्वपूर्ण है।

पाकिस्तान के साथ तनाव: इसराइल ने कई मौकों पर भारत-पाकिस्तान तनाव में भारत का साथ दिया, जबकि ईरान ने तटस्थ रुख अपनाया। यह भारत के लिए इसराइल को करीबी सहयोगी बनाता है।

भारत पर युद्ध का असर

यदि इसराइल और ईरान के बीच युद्ध बढ़ता है, तो भारत पर इसका गहरा असर पड़ सकता है:
तेल की कीमतें: मध्य पूर्व से भारत को कच्चा तेल मिलता है। युद्ध के कारण तेल की आपूर्ति बाधित हो सकती है, जिससे कीमतें बढ़ेंगी और भारत की अर्थव्यवस्था प्रभावित होगी।
विमान सेवाएं: हाल ही में तनाव के कारण एयर इंडिया ने तेल अवीव की उड़ानें रद्द कर दीं और कई उड़ानों को डायवर्ट किया गया।
आर्थिक प्रोजेक्ट्स: भारत-मध्य पूर्व-यूरोप आर्थिक गलियारा जैसे प्रोजेक्ट्स प्रभावित हो सकते हैं।

इसराइल और ईरान के बीच तनाव में इसराइल अपनी उन्नत तकनीक और सैन्य क्षमता के कारण शुरुआती दौर में भारी पड़ रहा है, लेकिन ईरान की प्रॉक्सी ताकतें इसे लंबा खींच सकती हैं। भारत ने इस मामले में तटस्थ रुख अपनाया है, लेकिन रक्षा और तकनीकी सहयोग के कारण उसका झुकाव इसराइल की ओर माना जाता है। फिर भी, भारत की प्राथमिकता मध्य पूर्व में शांति और अपने आर्थिक हितों की रक्षा है।इस युद्ध का असर न केवल मध्य पूर्व, बल्कि भारत जैसे देशों पर भी पड़ सकता है। इसलिए, वैश्विक समुदाय को इस तनाव को कम करने के लिए कूटनीतिक प्रयास करने होंगे। आप इस मुद्दे पर क्या सोचते हैं? नीचे कमेंट करें और अपने विचार साझा करें!

By Abhishek Anjan

I am a mass communication student and passionate writer. With the last four -year writing experience, I present intensive analysis on politics, education, social issues and viral subjects. Through my blog, I try to spread awareness in the society and motivate positive changes.

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