मुजफ्फरपुर में रेल मंत्री के खिलाफ प्रदर्शन: आखिर क्या है पूरा माजरा?
बिहार का मुजफ्फरपुर इन दिनों सुर्खियों में है, और वजह है रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव के खिलाफ चल रहा जोरदार प्रदर्शन। यह मामला तब शुरू हुआ जब मुजफ्फरपुर जंक्शन के विकास कार्य के दौरान रेलवे ने स्टेशन पर मौजूद एक पुराने हनुमान मंदिर को रातों-रात बुलडोजर से ढहा दिया। यह मंदिर स्थानीय लोगों के लिए आस्था का प्रतीक था, और इसके अचानक हटाए जाने से नाराजगी की लहर दौड़ गई। लेकिन कहानी यहीं खत्म नहीं होती—इस घटना ने एक बड़े विवाद को जन्म दिया, जिसमें मंदिर के साथ-साथ रेलवे ट्रैक के पास मौजूद एक मस्जिद भी चर्चा का केंद्र बन गई। तो आइए, इस पूरे मामले को करीब से समझते हैं।
मंदिर हटाने से भड़का गुस्सा
मुजफ्फरपुर जंक्शन को वर्ल्ड-क्लास स्टेशन बनाने की योजना के तहत रेलवे ने यह कदम उठाया। मंदिर स्टेशन के मुख्य द्वार के पास था, और रेलवे का तर्क है कि इसे हटाना प्रोजेक्ट के लिए जरूरी था। लेकिन स्थानीय लोगों और हिंदू संगठनों को यह फैसला नागवार गुजरा। विश्व हिंदू परिषद, बजरंग दल और सनातन हिंदू वाहिनी जैसे संगठनों ने सड़कों पर उतरकर विरोध जताया। उनकी मांग साफ है—मंदिर को उसी जगह दोबारा बनाया जाए। प्रदर्शनकारियों ने रेलवे प्रशासन और रेल मंत्री के खिलाफ नारेबाजी की, और माहौल गर्म हो गया।
मस्जिद पर क्यों उठी उंगली?
विवाद तब और बढ़ गया जब लोगों ने सवाल उठाया कि अगर मंदिर को हटाना जरूरी था, तो रेलवे ट्रैक के किनारे बनी एक मस्जिद को क्यों नहीं छुआ गया? प्रदर्शनकारियों का आरोप है कि यह पक्षपात का मामला है। उनका कहना है कि अगर स्टेशन के विकास के लिए मंदिर हटाया जा सकता है, तो मस्जिद को भी हटाया जाना चाहिए। इस सवाल ने धार्मिक भावनाओं को और भड़का दिया, और सोशल मीडिया पर भी बहस छिड़ गई। कुछ लोग इसे सरकार और रेलवे की नीति पर सवाल उठाने का मौका मान रहे हैं, तो कुछ इसे सांप्रदायिक रंग देने की कोशिश बता रहे हैं।
रेलवे का पक्ष और प्रशासन की चुप्पी
रेलवे का कहना है कि मंदिर को हटाना स्टेशन के आधुनिकीकरण का हिस्सा था, और यह फैसला सोच-समझकर लिया गया। लेकिन मस्जिद के बारे में कोई स्पष्ट जवाब नहीं दिया गया है। शायद इसलिए कि मस्जिद ट्रैक के किनारे है और प्रोजेक्ट के दायरे में सीधे नहीं आती। दूसरी ओर, जिला प्रशासन ने भी इस मामले में अब तक सख्त रुख नहीं अपनाया। प्रदर्शन शुरू हुए 18 मार्च से लेकर आज, 21 मार्च 2025 तक, प्रशासन और प्रदर्शनकारियों के बीच बातचीत बेनतीजा रही है।
जनता का गुस्सा और भविष्य
यह प्रदर्शन अब सिर्फ मंदिर या मस्जिद का मसला नहीं रहा, बल्कि यह रेलवे की पारदर्शिता और सरकार की जवाबदेही पर सवाल बन गया है। लोग पूछ रहे हैं कि क्या टैक्सपेयर्स का पैसा ऐसे प्रोजेक्ट्स में लगना चाहिए, जो धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाएं? क्या रेल मंत्री इस पर कोई बयान देंगे? या फिर यह मामला भी समय के साथ ठंडा पड़ जाएगा? मुजफ्फरपुर के लोग अभी जवाब चाहते हैं, और उनका गुस्सा सड़कों पर साफ दिख रहा है।
आप क्या सोचते हैं? क्या यह विकास और आस्था के बीच का टकराव है, या कुछ और? अपनी राय जरूर बताएं, क्योंकि यह कहानी अभी खत्म नहीं हुई है!
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